प्रिय प्रयावरण भारती के पाठक और सुभ चिंतकों को प्रणाम,
आप के हाथ में अगस्त २०१५ का अंक है जो देश में
पर्यावरण व् प्राणी समस्याओं पर आपका ध्यान आकर्षित करता है.
“ नहीं पहुँचते अल्लाह के पास गोष्त और लहू के
लुकमे
पहुचती है अल्लाह के पास तेरी परहेजगारी और दयानतगारी
”
आने वाले कुछ दिनों में अल्लाह को सिजदा करने
वाला त्यौहार बकरईद पुरे विश्व में मनाया जायेगा. इस त्यौहार में क़ुरबानी का विशेष
महत्व है. क़ुरबानी अपने अहम् की, क़ुरबानी अपनी इच्छाओं की, क़ुरबानी अपनी सम्पति की
लेकिन इसका रूप पशु क़ुरबानी में बदल जाता है.
यानि भेड, बकरी, बकरा आदि की क़ुरबानी देकर जकात
की जाती है. आज के आधुनिक समय में जबकि हर रीति रिवाज में परिवर्तन आ चूका है.
जैसे एक धर्म में पत्ति के मरने पर पत्नी को सत्ति कर दिया जाता था. इस कुरीति
को कानून का जामा पहरा कर रोक दिया गया.
आज इस परम्परा से हम निदान पा चुके है. ऐसी कितनी ही परम्परा जैसे बाल विवाह,
मंदिरोंऔर हवन में बलि आदि से लगभग छुटकारा मिल चूका है.
वेसे तो कुर्बानी पूर्णतय: एक परम्परा का निर्वहन
मात्र है लेकिन इस का विभित्स रूप पश्चिम बंगाल विशेषत: कलकत्ता में देखा जा सकता
है. १९७१ में बांग्लादेश बनने का दुष्परिणाम, बंगाल सर्कार के द्वारा पश्चिम बंगाल
पशु हत्या नियंत्रण अधिनियम १९५० की धारा १२ में बकरी ईद पर स्वस्थ्य गाय की
क़ुरबानी देने के रूप में आया था.
बंगाल के अहिंसावादी कलकत्ता ऊच्च न्यायालय मे इस
के खिलाफ गये और उच्च न्यायलय ने दोनों पक्षों को सुन कर धारा १२ में धार्मिक
कार्यो में गौवंश की कुर्बानी की छुट को निरस्त कर दिया. इस निर्णय में ११ वर्ष
लगे और कलकत्ता उच्च न्यायलय के इस् निर्णय के विरोध में बंगाल सरकार ने सर्वोच्च
न्यायालय में याचिका दायर कर दी. और
माननीय कलकत्ता उच्च न्यायालय के निर्णय को सही ठहराने और बंगाल सरकार की
याचिका को निरस्त करने में पुन: १३ वर्ष लग गये
सर्वोच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधीश श्री
कुलदीप सिंह, श्री हंसारिया और श्री मजुमदार ने हदीस शरीफ का हवाला देते हुए कहा
की बकर ईद पर अगर ७ भाई ७ बकरों की कुर्बानी नहीं दे सकें तो वोह मिल कर एक ऊँट या
गाय की कुर्बानी दे’ यांनी गाय की कुर्बानी देना एक आर्थिक सुविधा है और कोई धर्म
का अमिट अंग नही है. और लाखो गायों को सुरक्षा देते हुए याचिका निरस्त कर दी थी.
1995 में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के पश्चात
उस समय के बंगाल के पशुपालन मंत्री श्री बुध देव भट्टाचार्य – जो बाद में
मुख्यमंत्री भी रहे – समाचारपत्रों के माध्यम से बकर ईद पर गाय की कुर्बानी को
अवैध घोषित किया .
कागजो में तो सुरक्षा मिल गयी लेकिन वास्तव में
गत २० वर्षों में हर बकर ईद से कुछ माह पहले पुरे देश से स्वस्थ्य गायो बंगाल –
कलकत्ता आना चालू हो जाता है. व्यस्त सडकों की पटरीयां गायो के बाजार और गोदाम में
परिवर्तित हो जाते है. राज्य और राष्ट्र के सभी विधि विधानों का पूर्ण उलंघन करते
हुए बकर ईद के तीन दिनों के उत्सव में अत्ति सुंदर, स्वस्थ्य गायें खरीदी, बेचीं
और कुर्बानी (काट) दी जाती हैं.
गत २० वर्षो में कलकत्ता उच्च न्यायालय के समक्ष
रिट, PIL, आदेश उलंघन सुचना (कंटेम्प्ट) याचिकाएं, लगायी जाती रही है. गत वर्ष यह
विषय मैंने यह विषय महामहिम राज्यपाल श्री केसरीनाथ त्रिपाठी जी समक्ष रखा था.
इस वर्ष भी हमारा देश और राज्य के विधि विधानों
को पालन करवाते हुए गौवंश रक्षा का बभुगामी प्रयास है जैसे माननीय कलकत्ता उच्च
न्यायालय में रिट संख्या २०३८७ /२०१५ लगायी जा चुकी है और २८ अगस्त,२०१५ को माननीय
मुख्य न्यायमूर्ति और न्यायमूर्ति के
द्वारा सुनी जाएगी. शनिवार, १२ सितम्बर को कलकत्ता के धर्मतल्ला में गौमाता रक्षा
अभियान कार्यक्रम में हजारो अहिंसक, पर्यावरण और गौ प्रेमी एकत्र हो कर बंगाल की
सोयी हुई सरकार को जगाने का यत्न करेंगे. प्राणी रक्षको के दल अपने प्राणों पर खेल
कर भी, गौरक्षा का यत्न करेंगे,
पर्यावरण भारती के माध्यम से आप सभी पर्यावरण और
प्राणी प्रेमिओं से अनुरोध करता हूँ कि अपने अपने क्षेत्रो में इस जघन्य प्राणी
संहार को रोकें.
पर्यावरण भारती आपकी अपनी पत्रिका है. आपकी
लेखनी, आपकी जानकारी, आपका सहयोग की कामना करता हूँ .
आपका अपना
डॉ. श्रीकृष्ण मित्तल
संरक्षक
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Dr.SK MIttal